Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2017

होमरूल लीग आंदोलन एवं लखनऊ समझौता

होमरूल लीग आंदोलन एवं लखनऊ समझौता होमरूल लीग आंदोलन भारतीय होमरूल लीग का गठन आयरलैंड के होमरूल  लीग के नमूने पर किया गया था, जो तत्कालीन परिस्थितियों में तेजी से उभरती हुयी प्रतिक्रियात्मक राजनीति के नये स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता था।  ऐनी बेसेंट और तिलक इस नये स्वरुप के अगुवा थे। होमरूल आंदोलन प्रारम्भ होने के उत्तरदायी कारक राष्ट्रवादियों के एक वर्ग का मानना था कि सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए उस पर दबाव डालना आवश्यक है।मार्ले-मिंटो सुधारों का वास्तविक स्वरुप सामने आने पर नरमपंथियों का भ्रम सरकार की निष्ठा से टूट गया।प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन द्वारा भारतीय संसाधनों का खुल कर प्रयोग किया गया। इस क्षतिपूर्ति के लिये युद्ध के उपरांत भारतीयों पर भारी कर आरोपित किये गये तथा आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगीं। इन कारणों से भारतीय त्रस्त हो गये तथा वे ऐसे किसी भी सरकार विरोधी आंदोलन में भाग लेने हेतु तत्पर थे।यह विश्वयुद्ध तत्कालीन विश्व की प्रमुख महाशक्तियों के बीच अपने-अपने हितों को लेकर लड़ा गया था तथा इससे अन्य ताकतों के साथ ब्रिटेन का वास्तविक चेहरा भी

उग्र-राष्ट्रवाद या अतिवादी राजनीति के उदय के कारण

उग्र-राष्ट्रवाद या अतिवादी राजनीति के उदय के कारण उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों विशेषतः 1890 के पश्चात भारत में उग्र राष्ट्रवाद का उदय प्रारंभ हुआ तथा 1905 तक आते-आते इसने पूर्ण स्वरूप धारण कर लिया। किंतु इसके पीछे क्या कारण थे ? कांग्रेस की अनुनय-विनय की नीति  से ब्रिटिश सरकार पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा तथा वे शासन में मनमानी करते रहे। इसके प्रतिक्रियास्वरूप इस भावना का जन्म हुआ कि स्वराज्य मांगने से नहीं अपितु संघर्ष से प्राप्त होगा। संवैधानिक आंदोलन से भारतीयों का विश्वास उठ गया। अतः  संघर्ष द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने की जिस भावना का जन्म हुआ उसे ही उग्र राष्ट्रवाद की भावना कहते हैं।भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक दल इसी भावना का कट्टर समर्थक था। इस दल का मत था कि कांग्रेस का ध्येय स्वराज्य होना चाहिए, जिसे वे आत्मविश्वास या आत्म-निर्भरता से प्राप्त करें। यह दल उग्रवादी कहलाया। जिन तत्वों के कारण उग्र राष्ट्र-वाद का जन्म हुआ, उनमें प्रमुख निम्नानुसार हैं- अंग्रेजी राज्य के सही स्वरूप की पहचान अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस के प्रार्थना-पत्रों एवं मांगों पर ध

कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें

कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें प्रस्तावना 19वीं शताब्दी के पूर्वाध में भारत में जिन राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना हुयी उनका नेतृत्व मुख्यतः समृद्ध एवं प्रभावशाली वर्ग द्वारा किया गया। इन संस्थाओं का स्वरूप स्थानीय या क्षेत्रीय था। इन्होंने विभिन्न याचिकाओं एवं प्रार्थना-पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश संसद के समक्ष निम्न मांगें रखीं- प्रशासनिक सुधारप्रशासन में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ावा शिक्षा का प्रसार किंतु 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में देश में जिन राजनीतिक संस्थाओं का गठन हुआ उसका नेतृत्व मुख्यतः मध्य वर्ग के द्वारा किया गया। इस वर्ग के विभिन्न लोगों जैसे-वकीलों, डाक्टरों, पत्रकारों तथा शिक्षकों इत्यादि ने इन राजनीतिक संगठनों को शसक्त नेतृत्व प्रदान किया इन सभी ने सक्षम नेतृत्व प्रदान कर इन संस्थाओं की मांगों को परिपूर्णता एवं प्रासंगिकता प्रदान की। बंगाल में राजनीतिक संस्थाएं बंगाल में राजनीतिक आंदोलनों के सबसे पहले प्रवर्तक थे  राजा राममोहन राय । वे पाश्चात्य विचारों से प्रभावित व्यक्ति थे। उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजों का ध्यान भारतीय

स्वतंत्रता संघर्ष की शुरुआत: The Beginning Of The Struggle For Independence

स्वतंत्रता संघर्ष की शुरुआत: The Beginning Of The Struggle For Independence प्रस्तावना  इस लेख के द्वारा हम भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय के कारण ,कांग्रेस के गठन से पूर्व की राजनीतिक संस्थायें , कांग्रेस का गठन व उदारवादियों की शुरुआती सफलता के बारे में समझने की कोशिश करेंगे व विगत वर्षों के कुछ प्रश्नों को देखेंगे… उदारवादी चरण और प्रारंभिक कांग्रेस 1858-1905 ई. भारत में राष्ट्रवाद का उदय और विकास उन कारकों का परिणाम माना जाता है, जो भारत में उपनिवेशी शासन के कारण उत्पन्न हुए जैसे- नयी-नयी संस्थाओं की स्थापना, रोजगार के नये अवसरों का सृजन, संसाधनों का अधिकाधिक दोहन इत्यादि। किंतु विभिन्न परिस्थितियों के अध्योनपरांत यह ज्यादा तर्कसंगत होता है कि भारत में राष्ट्रवाद का उदय किसी एक कारण या परिस्थिति से उत्पन्न न होकर विभिन्न कारकों का सम्मिलित प्रतिफल था। संक्षिप्त रूप में देखा जाये तो भारत में राष्ट्रवाद के उदय एवं विकास के लिये निम्न कारक उत्तरदायी थे– विदेशी आधिपत्य का परिणाम।पाश्चात्य चिंतन तथा शिक्षा।फ्रांसीसी क्रांति के फलस्वरूप विश्व स्तर पर राष्ट्र