सिविल सेवा परीक्षा का दूसरा चरण ‘मुख्य परीक्षा’ कहलाता है। प्रारंभिक परीक्षा में सफल होने वाले उम्मीदवारों को सामान्यतः अक्तूबर से नवंबर माह के दौरान मुख्य परीक्षा देने के लिये आमंत्रित किया जाता है।
गौरतलब है कि जहाँ प्रारंभिक परीक्षा पूरी तरह वस्तुनिष्ठ (Objective) होती है, वहीं मुख्य परीक्षा में अलग-अलग शब्द सीमा वाले वर्णनात्मक (Descriptive) प्रश्न पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों में विभिन्न विकल्पों में से उत्तर चुनना नहीं होता बल्कि अपने शब्दों में लिखना होता है। यही कारण है कि मुख्य परीक्षा में सफल होने के लिये अच्छी लेखन शैली को भी एक महत्त्वपूर्ण योग्यता माना जाता है।
प्रारंभिक परीक्षा की प्रकृति जहाँ क्वालिफाइंग होती है, वहीं मुख्य परीक्षा में प्राप्त अंकों को अंतिम मेधा सूची में जोड़ा जाता है। अत: परीक्षा का यह चरण अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं काफी हद तक निर्णायक होता है।
मुख्य परीक्षा परिणामतः और गुणात्मक दृष्टि से प्रारंभिक परीक्षा से भिन्न होती है। अतः इसके लिये भिन्न और विशिष्ट रणनीति की भी दरकार होती है।
अगर आप हिंदी माध्यम से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपको सामान्य अध्ययन से जुड़ी उन समस्याओं की समझ होनी चाहिये जो विशेष रूप से आपके सामने आने वाली हैं।
मूल समस्या यह है कि सामान्य अध्ययन (मुख्य परीक्षा) में हिंदी माध्यम के उम्मीदवार अंग्रेज़ी माध्यम की तुलना में कुछ नुकसान की स्थिति में रहते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि आयोग जान-बूझकर हिंदी माध्यम के विरुद्ध कोई साजिश करता है। दरअसल, यह नुकसान परीक्षा प्रणाली की आंतरिक प्रकृति के कारण होता है, जिसमें पाठ्य-सामग्री की अनुपलब्धता, परीक्षक की सहजता का स्तर एवं प्रश्नपत्र में अनुवाद संबंधी त्रुटियों से सम्बंधित हो सकता है।
इन समस्याओं का समाधान काफी हद तक किया जा सकता है। परीक्षक का हिंदी में सहजता का स्तर क्या है, इसे तो हम नियंत्रित नहीं कर सकते; पर बाकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
कोई भी विषय पढ़ते हुए जो पारिभाषिक या तकनीकी शब्द बीच में आए, उसे हिंदी के साथ अंग्रेज़ी में भी पढ़ें और अपने नोट्स में लिखें और सामान्य अध्ययन के उत्तर लिखते हुए हिंदी के कठिन शब्दों का प्रयोग करने से बचें। अगर कोई जटिल तकनीकी शब्द लिखना ज़रूरी हो जाए तो पहली बार उसका प्रयोग करते समय कोष्ठक में उसका अंग्रेज़ी रूप भी लिख दें, जैसे- ‘नाभिकीय संलयन’ (Nuclear Fusion), ‘युक्तियुक्त निर्बंधन’ (Reasonable Restrictions) इत्यादि।
इसके अलावा, अगर कोई अंग्रेज़ी शब्द सामान्य व्यवहार में बहुत प्रचलित हो चुका हो तो उस शब्द को देवनागरी लिपि में लिखकर काम चलाएँ और हिंदी अनुवाद लिखने से बचें (जैसे- रोबोटिक्स, राडार, सॉफ्टवेयर इत्यादि)।
हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों को सामान्य अध्ययन के उन खंडों पर ज़्यादा बल देना चाहिये जिनमें माध्यम से फर्क न पड़ता हो। ये वे खंड हैं जिनमें हिंदी में पर्याप्त पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिनमें बार-बार कुछ ‘अपडेट’ नहीं करना पड़ता और जिनमें पारिभाषिक या तकनीकी शब्दों का प्रयोग या तो अधिक मात्रा में होते नहीं, और अगर होते भी हैं तो ऐसे अधिकांश हिंदी शब्द व्यवहार में मान्य और स्थिर हो चुके हैं।
ऐसे खंडों में इतिहास, संस्कृति, संविधान, सामाजिक समस्याएँ, सामाजिक न्याय तथा नीतिशास्त्र जैसे खंडों को रखा जा सकता है। हिंदी माध्यम के उम्मीदवारों को इन खंडों को ज़्यादा गहराई से तैयार करना चाहिये ताकि इनमें वे अपने प्रतिस्पर्द्धियों से आगे निकल सकें।
परीक्षा में अगर दो विकल्पों में से एक प्रश्न करना हो और विकल्पों में से एक उपरोक्त खंडों में से कोई हो तो प्राथमिकता उसे ही दी जानी चाहिये। इसका अर्थ यह नहीं है कि बाकी खंडों को छोड़ दिया जाए। उन्हें भी हिंदी में उपलब्ध सामग्री के स्तर पर तैयार किया ही जाना चाहिये।
प्रारंभिक परीक्षा के बाद मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिये सिर्फ तीन से साढ़े तीन महीने का समय ही मिल पाता है। ऐसे में, इतने कम समय में मुख्य परीक्षा की तैयारी के लिये समय प्रबंधन अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन गया है। अतः स्वाभाविक है कि जब समय की कमी होती है तब रणनीति की महत्ता बढ़ जाती है।
शुरुआत से ही जो छात्र उपलब्ध समय को ध्यान में रखकर मुख्य परीक्षा हेतु विशेष रणनीति अपनाकर अध्ययन करेंगे, उन्हें परीक्षा में किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।
एक विस्तृत रणनीति प्रस्तुत
परीक्षा का स्वरूप
प्रारंभिक परीक्षा की तरह ही सिविल सेवा मुख्य परीक्षा की रणनीति बनाने से पूर्व इसके स्वरूप एवं ‘पाठ्यक्रम’ की संरचना का अध्ययन करें एवं उसके समस्त भाग एवं पहलुओं को ध्यान में रखते हुए सुविधा एवं रुचि के अनुसार वरीयता क्रम निर्धारित करें।
ध्यातव्य है कि सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में विषयों का बँटवारा अनिवार्य एवं वैकल्पिक विषय के रूप में किया गया है।
अनिवार्य विषयों में निबंध, सामान्य अध्ययन के चार प्रश्नपत्र, अंग्रेजी भाषा (क्वालिफाइंग) एवं हिंदी या संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल कोई भाषा (क्वालिफाइंग) तथा वैकल्पिक विषय के अंतर्गत विज्ञप्ति में दिये गए विषयों में से अभ्यर्थी द्वारा चयनित कोई एक वैकल्पिक विषय शामिल है।
2012 तक यह परीक्षा कुल 2000 अंकों की होती थी जिसमें 600 अंकों का सामान्य अध्ययन (300-300 अंकों के दो प्रश्नपत्र) तथा 600-600 अंकों के दो वैकल्पिक विषय (प्रत्येक में 300-300 अंकों के दो प्रश्नपत्र) होते थे। इसके अलावा, 200 अंकों का एक प्रश्नपत्र निबंध-लेखन का होता था। 300-300 अंकों के प्रश्नपत्र अंग्रेज़ी तथा भारतीय भाषा (हिंदी या कोई अन्य भाषा) के भी होते थे, पर दोनों भाषाओं के ये प्रश्नपत्र सिर्फ ‘क्वालिफाइंग’ प्रकृति के थे अर्थात् इनमें प्राप्त होने वाले अंक उम्मीदवार की योग्यता के निर्धारण में शामिल नहीं होते थे।
2013 में यह संरचना व्यापक रूप से बदल गई है। अब मुख्य परीक्षा कुल 1750 अंकों की है जिसमें 1000 अंक सामान्य अध्ययन के लिये (250-250 अंकों के 4 प्रश्नपत्र), 500 अंक एक वैकल्पिक विषय के लिये (250-250 अंकों के 2 प्रश्नपत्र) तथा 250 अंक निबंध के लिये निर्धारित हैं।
नवीन संशोधन के पश्चात् सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के विभिन्न प्रश्नपत्र तथा उनके भारांक इस प्रकार हैं
'क्वालिफाइंग’ प्रकृति के दोनों प्रश्नपत्र अभी भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे। भारतीय भाषा में न्यूनतम अर्हता अंक 25% (75) तथा अंग्रेज़ी में भी न्यूनतम अर्हता अंक 25% (75) निर्धारित किये गए हैं। इन प्रश्नपत्रों के अंक योग्यता निर्धारण में नहीं जोड़े जाते हैं।
मुख्य परीक्षा के प्रश्नपत्र अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों भाषाओं में साथ-साथ प्रकाशित किये जाते हैं, पर उम्मीदवारों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में से किसी में भी उत्तर देने की छूट होती है।
केवल साहित्य के विषयों में यह छूट है कि उम्मीदवार उसी भाषा की लिपि में उत्तर लिखता है, चाहे उसका माध्यम वह भाषा न हो। उदाहरण के लिये, अंग्रेज़ी माध्यम का उम्मीदवार अगर वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी साहित्य का चयन करता है तो उसके उत्तर वह देवनागरी लिपि में लिखेगा। शेष मामलों में, इसकी अनुमति नहीं है कि उम्मीदवार अलग-अलग प्रश्नपत्रों के उत्तर अलग-अलग भाषाओं में दे (हालाँकि कुछ राज्यों के लोक सेवा आयोगों ने ऐसी अनुमति दी हुई है)।
ध्यातव्य है कि सिविल सेवा परीक्षा के लिये निर्धारित 2025 अंकों (1750 मुख्य परीक्षा एवं 275 साक्षात्कार) में मुख्य परीक्षा का अंश बहुत अधिक (लगभग 86% से ज़्यादा) है। ऐसे में जो परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा में अधिक से अधिक अंक प्राप्त करेगा, उसके लिये न केवल साक्षात्कार बल्कि अंतिम रूप से चयनित होने की राह बहुत आसान हो जाएगी। अत: परीक्षा के इस चरण के लिये एक कारगर रणनीति बनाने की आवश्यकता है।
प्रश्नों की प्रकृति
मुख्य परीक्षा के सात प्रश्नपत्रों में 4 सामान्य अध्ययन के, 2 वैकल्पिक विषय के और एक निबंध का प्रश्नपत्र शामिल है। सामान्य अध्ययन के चार प्रश्नपत्रों में विभिन्न विषय शामिल हैं।
यदि मोटे तौर पर सामान्य अध्ययन के संपूर्ण पाठ्यक्रम को देखा जाए तो इसके अंतर्गत मुख्य रूप से भारत और विश्व का इतिहास, भारत और विश्व का भूगोल, संविधान व राजव्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, आंतरिक सुरक्षा, सामाजिक न्याय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और अर्थव्यवस्था तथा एथिक्स आदि खंड शामिल हैं।
सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-4 को छोड़कर शेष सभी प्रश्नपत्रों में 20 या 25 अनिवार्य प्रश्न होते हैं जिन्हें नियत समय (3 घंटे) व निश्चित शब्द-सीमा (सामान्यतः 100 से 200 शब्दों) के अंतर्गत लिखना होता है। प्रश्नों की संख्या एवं उत्तर की शब्द सीमा में आयोग द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहा है।
सामान्य अध्ययन के प्रथम तीन प्रश्नपत्रों में विगत दो वर्षों से प्रत्येक प्रश्नपत्र में कुल 20 प्रश्न पूछे जा रहे हैं जिनका उत्तर 200 शब्दों में लिखना होता है। प्रत्येक प्रश्न के लिये 12.5 अंक निर्धारित किया गया है।
सामान्य अध्ययन का चतुर्थ प्रश्नपत्र (नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा, और अभिवृत्ति) मुख्यत: दो भागों (थ्योरी एवं केस स्टडी) में विभाजित है, जिनमें विगत दो वर्षों से थ्योरी खंड से लगभग 8 प्रश्न (लगभग 130-150 अंक) और केस स्टडी खंड से लगभग 6 से 7 प्रश्न (लगभग 100-120 अंक) पूछे जा रहे हैं। ये प्रश्न दो-तीन उपभागों में विभजित होते हैं। उत्तर की शब्द सीमा (सामान्यत: 150-300 शब्द) में आयोग द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किया जाता रहा है।
निबंध का प्रश्नपत्र मुख्यत: दो भागों (मूर्त एवं अमूर्त रूप) में विभाजित रहता है। प्रत्येक भाग में दिये गए 4 विकल्पों में से एक-एक विकल्प का चयन करते हुए कुल दो निबंध (प्रत्येक 125 अंक) लिखने होते हैं। प्रत्येक निबंध के लिये निर्धारित शब्द सीमा लगभग 1000-1200 होती है।
वैकल्पिक विषय (अभ्यर्थी द्वारा चयनित) के दोनों प्रश्नपत्र मुख्यतः दो-दो खंडों (खंड-क एवं खंड-ख) में विभाजित रहते हैं। प्रत्येक खंड से 4-4 प्रश्न (कुल 8 प्रश्न) पूछे जाते हैं। उम्मीदवारों को कुल 5 प्रश्नों के उत्तर लिखने होते हैं, जिनमें खंड-क एवं खंड-ख से पहला प्रश्न (क्रमश: प्रश्न संख्या 1 और 5 ) अनिवार्य होता है और शेष में से 3 प्रश्नों का उत्तर लिखना होता है, जिनमें प्रत्येक खंड से कम-से-कम एक प्रश्न अवश्य होना चाहिये।
प्रश्न संख्या 1 और 5 (अनिवार्य प्रश्न) 5 उपखंडों (क ख ग घ और ङ ) में विभाजित रहता है, जिनमें प्रत्येक प्रश्न के लिये 10 अंक (शब्द सीमा 150) निर्धारित किया गया है तथा शेष प्रश्न 3 उपखंडों (क ख और ग) में विभाजित रहते हैं , जिनमें प्रत्येक प्रश्न के लिये 15-20 अंक (शब्द सीमा 100-300) निर्धारित किया गया है। प्रश्नों की संख्या एवं उत्तर की शब्द सीमा में आयोग द्वारा परिवर्तन किया जा सकता है।
क्वालिफाइंग अंग्रेज़ी भाषा प्रश्नपत्र के सभी प्रश्न अनिवार्य होते हैं, जिनका उत्तर उम्मीदवार को केवल अंग्रेज़ी भाषा में ही लिखना होता है। इस प्रश्नपत्र में मुख्यतः 5-6 प्रश्न पूछे जाते हैं जो एक से अधिक उपखंडों में विभाजित रहते हैं। उत्तर की शब्द सीमा एवं उसके लिये निर्धारित अंक प्रत्येक प्रश्न के सामने अंकित रहता है ।
क्वालिफाइंग हिंदी या संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किसी भाषा के प्रश्नपत्र के सभी प्रश्न अनिवार्य होते हैं, जिनका उत्तर उम्मीदवार को केवल उसी भाषा में ही लिखना होता है जिस भाषा में प्रश्नपत्र का चयन किया गया है (यदि किसी प्रश्न विशेष में अन्यथा निर्दिष्ट न हो)। इस प्रश्नपत्र में मुख्यतः 5-6 प्रश्न पूछे जाते हैं जो एक से अधिक उपखंडों में विभाजित रहते हैं। उत्तर की शब्द सीमा एवं उसके लिये निर्धारित अंक प्रत्येक प्रश्न के सामने अंकित रहता है ।
दोनों क्वालिफाइंग प्रश्नपत्रों में न्यूनतम अर्हता अंक 25-25% (75) निर्धारित किये गए हैं। इन प्रश्नपत्रों के अंक योग्यता निर्धारण में नहीं जोड़े जाते हैं।
विगत दो वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग ने सीधे तौर पर परंपरागत प्रश्नों की बजाय समीक्षात्मक, मूल्यांकनात्मक, तुलनात्मक व आलोचनात्मक प्रकृति के प्रश्न ज़्यादा पूछे हैं।
प्रश्नों की शब्द-सीमा तय होने के बावजूद उत्तर की विषय-वस्तु को शब्द-सीमा पर वरीयता दी गई है। किंतु, प्रश्नों की इतनी अधिकता है कि सभी प्रश्नों के उत्तर निर्धारित शब्द-सीमा में लिखने पर समय-प्रबंधन खुद एक समस्या बन जाता है।
क्या रणनीति अपनाई जाए ?
पाठ्यक्रम के विस्तार व अंकों की दृष्टि से मुख्य परीक्षा में सामान्य अध्ययन की भूमिका सर्वाधिक यानी आधे से ज़्यादा है। अगर सिविल सेवा परीक्षा के तीनों चरणों (प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा तथा साक्षात्कार) की दृष्टि से भी देखें तो भी पूरी परीक्षा सिर्फ सामान्य अध्ययन का ही खेल मालूम पड़ती है। इसलिये, किसी को भी पहली नज़र में ऐसा लग सकता है कि सामान्य अध्ययन ही सिविल सेवा परीक्षा की कुंजी है।
अभ्यर्थियों को यह बात भली-भाँति समझ लेना चाहिये कि इसके पाठ्यक्रम का विस्तार अनंत है और अगर वे जीवन भर पढ़ते रहें तो भी उस निश्चिंतता को हासिल नहीं कर सकते हैं जिसमें उन्हें पाठ्यक्रम पूरा तैयार हो जाने का अहसास हो। इसलिये पाठ्यक्रम के विभिन्न हिस्सों पर अलग-अलग मात्रा में बल देना ही सफलता की एकमात्र रणनीति है।
प्रारम्भिक परीक्षा के विपरीत मुख्य परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर को उत्तर-पुस्तिका में निर्धारित शब्दों में लिखना होता है अत: इसमें अच्छे अंक प्राप्त करने के लिये विषय की गहरी समझ एवं विश्लेषणात्मक क्षमता का होना अनिवार्य है। प्रश्नों की प्रकृति अब रटंत पद्धति से हटकर अवधारणात्मक सह-विश्लेषणात्मक प्रकार की हो गई है।
मुख्य परीक्षा के इस बदले हुए परिवेश में जहाँ समय प्रबंधन एक चुनौती बनकर उभरा है, वहीं इस मुख्य परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिये न केवल सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के विस्तृत समझ की आवश्यकता है बल्कि विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्नों एवं उस पर आधारित छद्म प्रश्नों का निर्धारित समय व निर्धारित शब्दों में उत्तर-लेखन आवश्यक है।
मुख्य परीक्षा के प्रश्नों की प्रकृति को मुख्यतः चार आधारों (स्थैतिक, गत्यात्मक, तथ्यात्मक एवं विश्लेषणात्मक प्रश्न) पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनके समन्वय से सरल, जटिल और विश्लेषणात्मक प्रकृति के प्रश्न पूछे जाते हैं।
स्थैतिक प्रश्नों में ज़्यादा फैलाव या विस्तार नहीं होता है। ऐसे प्रश्न मूल पाठ्य-पुस्तकों, जैसे- लक्ष्मीकांत, विपिन चंद्रा, माजिद हुसैन आदि से ही सीधे-सीधे पूछ लिये जाते हैं। इसलिये, इन्हें हल करने हेतु मूल पाठ्य-पुस्तकों को पढ़ना आवश्यक है।
गत्यात्मक प्रश्नों का स्वरूप बहुआयामी होता है और ये अंतरअनुशासनात्मक प्रकृति के भी होते हैं। इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर मूल पाठ्य-पुस्तक में नहीं मिलते, बल्कि अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं और रोज़मर्रा के समाचारों में उपलब्ध होते हैं। अतः ऐसे प्रश्नों के उत्तर लिखने के लिये स्तरीय समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं तथा अपने परिवेश में होने वाले बदलाव का सूक्ष्म अध्ययन ज़रूरी है। अतः छात्रों को इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
मुख्य परीक्षा की तैयारी के दौरान छात्र सबसे ज़्यादा ध्यान निबंध और वैकल्पिक विषय पर दें। उसके बाद सामान्य अध्ययन के प्रश्नपत्र-4 पर; फिर पेपर-1 पर तथा अंतिम प्राथमिकता पर पेपर-2 और 3 को रखें।
मुख्य परीक्षा की बेहतर तैयारी हेतु छात्रों को स्वयं के नोट्स तैयार करते रहना चाहिये और साथ ही साथ उनका रिवीज़न भी करते रहना चाहिये।
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